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Saturday, October 17, 2020

Ma Durga ki #aarti on Google search.

 जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी। (माता की #आरती)

जय मां दुर्गा , माता जी का त्योहार आज से शुरू हो रहा है। अम्बे मां की आरती करें और अपने कष्टों से मुक्ति पाएं। नवरात्रि के समय मां अम्बे की पूजा अर्चना करने का अलग ही वातावरण होता है। भक्त जन पूरे ९ दिन मां दुर्गा की आरती सुबह शाम करते है।और मां अम्बे भी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। मां दुर्गा की कृपा हम भक्तों पर बनी रहे बस यही हमारी मनोकामना है जिसके ऊपर माता की कृपा रहती है उसके ऊपर कोई कष्ट आने से पहले ही टल जाता है। लाख बाधाएं होते हुए भी उसके कार्य आसानी से संपूर्ण हो जाते हैं।



जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ॥

मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।। जय अम्बे गौरी,…



केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
 
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
 
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
 
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
 
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥


 
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
 
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

जय मां अम्बे।

Wednesday, October 14, 2020

तुलसी के पत्ते से ठीक हो जाते है ये रोग। तुलसी के पत्तों की उपयोगिता।

 तुलसी जी के पौधे का महत्व ।तुलसी जी के पत्ते के क्या लाभ है? कैसे उपयोग करें तुलसी के पत्ते?

प्राचीन काल से ही तुलसी का हमारे समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान है।हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही उपयोगी औषधि है जिसकी हम पूजा भी करते है और के भी क्यों नहीं तुलसी के औषधीय गुण इतने उपयोगी है, ये एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी है जो विटामिन और खनिजों में समृद्ध है।  सभी रोगों को ठीक करने के साथ ही शारीरिक शक्ति में वृद्धि करते हैं, उसे प्रत्यक्ष देवी कहा जाता है क्योंकि मानव जाति के लिए इसके अलावा कोई उपयोगी दवा नहीं है। तुलसी के धार्मिक महत्व के कारण, इसके पौधों को हर घर में लगाई जाती है। तुलसी की कई प्रजातियाँ हैं, उनमें से श्वेत और कृष्ण प्रमुख हैं। उन्हें राम तुलसी और कृष्ण तुलसी भी कहा जाता है। जिसका रंग गहरा हरा के साथ थोड़ी काली भी  होती है उस कृष्ण तुलसी और जी साधारण हरे रंग की होती है उस राम तुलसी कहते हैं।

 शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत ही 

Mantra Jaap se kya labh hota hai? जपने से क्या लाभ होता है।

 मंत्र किसे कहते है। मंत्र का क्या अर्थ होता हैं?  Mantra ka uchcharan kaise krte hai (Main menu of Mantra)

प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंत्रों के जाप की परंपरा चली आ रही है। मंत्र जप आत्मा, शरीर और पूरे वातावरण को शुद्ध करता है। छोटा सा मंत्र ही अपार शक्ति का संचार करता है। केवल इन मंत्रों के माध्यम से ही व्यक्ति सभी परेशानियों और कठिनाइयों से छुटकारा पाने में सक्षम होता है। मंत्र शक्ति प्राण शक्ति को जगाने का प्रयास करती है। भिक्षु और योगी इन मंत्रों के माध्यम से भगवान को प्राप्त करने में सक्षम हैं। मंत्र का एक विशेष अर्थ है, मंत्र की शक्ति का अनुभव करते हुए संतों द्वारा बनाया गया।


मंत्र उच्चारण के समय सूक्ष्म बात को भी बहुत ध्यान पूर्वक पालन करना चाहिए। मंत्रों का जाप करते समय विशेष निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

मंत्र का जाप करते समय  पूजा में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं, आसन, माला, वस्त्र, स्थान, समय और जप का समय आदि का ध्यान रखना चाहिए। यदि मंत्र ठीक उच्चारित किया जाए तो भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। मंत्र का जाप करने से पहले साधक को अपने मन और शरीर की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना चाहिए। हमें मन को केन्द्रित करके भगवान को याद करना चाहिए। जाप करने वाले को अपने आसन पर बैठकर ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। बैठने के लिए उपयुक्त आसन  ऊन का, रेशम, रुई, कुश या मृग छाल आदि से बनी होनी चाहिए। मंत्र उच्चारण में पूर्ण विश्वास होना चाहिए। मंत्रों में शाबर मंत्र, वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र शामिल हैं। मंत्र सिद्धि के लिए मंत्रों को गुप्त रखना चाहिए।


मंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

विशेषतः मंत्र जप तीन प्रकार से किया जाता है: - मन, भजन या उपांशु। मंत्र जप को संकीर्तन कहा जाता है, धीमे जप को उपांशु जप कहा जाता है और मानस जप जिसमें मंत्र जप का ध्यान आता है। मंत्रों का पाठ करते समय, मंत्रों का सही उच्चारण करना महत्वपूर्ण है, तभी आपको इन मंत्रों का पूरा लाभ मिलेगा। मन को शांत करने के लिए मंत्रों का जाप करने से मन में विश्वास की आवश्यकता होती है, तभी हम मंत्रों के प्रभाव से अवगत हो सकते हैं।

Sunday, October 11, 2020

बारह ज्योतिर्लिंगो जैसे दर्शन फल मिलता है ये मंत्र जपने से।


 इस स्तोत्र का जप जो भी भक्त प्रतिदिन करता है उसे बारह ज्योतिर्लिंगो जैसे दर्शन करने के समान फल की प्राप्ति होती है. केवल यही एक स्तोत्र है जिसका जाप करने से bhakt को शिव भगवान की कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही अन्य सभी देवी देवताओ की कृपा भी प्राप्त होती है

भगवान शिव जी  के 12 ज्योतिर्लिंगों  को एक ही स्तोत्र में वर्णित किया गया है। इसका पाठ करने से 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा के समान फल मिलता है । अतः भक्तों को द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोतम का पाठ अवश्य ही करना चाहिए

यहाँ द्वादश ज्योर्लिंग स्तोत्र का अर्थ सरल हिन्दी भाषा में भी किया जा रहा है

स्तोत्रम – Stotram

सौराष्ट्रदेशे विशदेsतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।1।।

अर्थ जो भगवान शिव जी अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए सौराष्ट्र प्रदेश में कृपा करने के लिए अवतरित हुए हैं, चंद्रमा की कला जिनके मस्तक का आभूषण बना है, उनके ज्योतिर्लिंग स्वरुप भगवान श्री सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ

श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगेतुलाद्रितुंगेsपि मुदा वसन्तम
तमर्जुनं मल्लिकापूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम ।।2।।

अर्थ जो पर्वतों से भी बढ़कर ऊँचे श्री शैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का अत्यन्त समागम रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार के सागर से पार कराने के लिए सेतु का कार्य करते है, उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं शीश झुका कर नमस्कार करता हूँ।

अवन्तिकायां विहितावतारंमुक्तिप्रदानाय सज्जनानाम्
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ।।3।।

अर्थ जिन्होंने अवन्तिपुरी (अर्थात उज्जैन) में संतजनो को मोक्ष देने के लिए अवतार  लिया है, उन महाकाल नाम से विख्यात महादेवजी शिव जी  को मैं अकाल मृत्यु से रक्षा के लिए प्रणाम करता हूँ.

कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे ।।4।।

अर्थ जो संसार के सागर से सत्पुरुषो को पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वित्तीय कल्याणमय भगवान ओमकारेश्वर जी महाराज रीका मैं स्तुति करता हूँ

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ।।5।।

अर्थ जो पूर्वोत्तर की दिशा  में चिताभूमि (वर्तमान का वैद्यनाथ धाम) के अंदर सदा ही गिरिजा अर्थात् माता पार्वती के साथ वास करते हैं, सुर और असुर जिनके चरण कमलों की अर्चना करते हैं, उन श्री वैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ

याम्ये सदंगे नगरेsतिरम्ये विभूषितांग विविधैश्च भोगै:
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ।।6।।

अर्थ जो  अत्यन्त ही मनोरम दक्षिण के सदंग नगर में विभिन्न प्रकार के भोगों से संपन्न होकर आभूषणों से सुसज्जित हो रहे हैं, जो एकमात्र सदभक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ जी की शरण में मैं जाता हूँ

महाद्रिपार्श्चे तट रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ।।7।।

अर्थ जो  केदारश्रृंग के तट पर महागिरि हिमालय के पास सदा निवास करते हुए मुनीश्वरो द्वारा पूजे जाते हैं तथा सुर, असुर, यज्ञ और महान सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन एक कल्याणकारक भगवान केदारनाथ का मैं स्तुति करता हूँ

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे
यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ।।8।।

अर्थ जो गोदावरी तट के पवित्र देश में सह्य पर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके दर्शन से तुरन्त ही पातक नष्ट हो जाता है, उन श्री त्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ.

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ।।9।।

अर्थ जो भगवान श्री रामचन्द्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ.

यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ।।10।।

अर्थ जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्ति हितकारी भगवान भीम शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ.

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ।।11।।

अर्थ जो स्वयं आनंद कन्द हैं और आनंदपूर्वक आनन्द वन (वर्तमान में काशी) में वास करते हैं, जो पाप समूह के नाश करने वाले हैं, उन अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूँ.

इलापुरे रम्यविशालकेsस्मिन समुल्लसन्तं जगद्वरेण्यम
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णे श्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ।।12।।

अर्थ जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजित होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में मैं जाता हूँ.

ज्योतिर्मयद्वादशलिंगानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोsतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ।।13।।

अर्थ यदि मनुष्य क्रमश: कहे गये इन द्वादश ज्योतिर्मय शिव लिंगो के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करें तो इनके दर्शन से होने वाला फल प्राप्त कर सकता है.

 

बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान – Twelve Jyotirlingam and Place

सोमनाथ                                 गुजरात

मल्लिकार्जुन                          आँध्र प्रदेश

महाकालेश्वर                         मध्य प्रदेश

ऊँकारेश्वर                              मध्य प्रदेश

केदारनाथ                              उत्तराखंड

भीमाशंकर                             महाराष्ट्र

काशी विश्वनाथ                     उत्तर प्रदेश

त्र्यम्बकेश्वर                          महाराष्ट्र

वैद्यनाथ धाम                       झारखंड

नागेश्वर                                गुजरात

रामेश्वरम                             तमिलनाडु

घृष्णेश्वर           महाराष्ट्र