इस स्तोत्र
का जप जो
भी भक्त प्रतिदिन
करता है उसे
बारह ज्योतिर्लिंगो जैसे
दर्शन करने के
समान फल की
प्राप्ति होती
है. केवल यही
एक स्तोत्र है
जिसका जाप करने
से bhakt को
शिव भगवान की
कृपा तो प्राप्त
होती ही है
साथ ही अन्य
सभी देवी देवताओ
की कृपा भी
प्राप्त होती
है. भगवान शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों को एक ही स्तोत्र में वर्णित किया गया है। इसका पाठ करने से 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा के समान फल मिलता है । अतः भक्तों को द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोतम का पाठ अवश्य ही करना चाहिए
यहाँ द्वादश
ज्योर्लिंग स्तोत्र
का अर्थ सरल
हिन्दी भाषा में
भी किया जा
रहा है।
स्तोत्रम – Stotram
सौराष्ट्रदेशे
विशदेsतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम
।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं
शरणं प्रपद्ये
।।1।।
अर्थ – जो
भगवान शिव जी अपनी
भक्ति प्रदान करने
के लिए सौराष्ट्र
प्रदेश में कृपा करने के लिए
अवतरित हुए हैं,
चंद्रमा की कला
जिनके मस्तक का
आभूषण बना है,
उनके ज्योतिर्लिंग
स्वरुप भगवान श्री
सोमनाथ की शरण
में मैं जाता
हूँ।
श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगेतुलाद्रितुंगेsपि मुदा
वसन्तम ।
तमर्जुनं मल्लिकापूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम
।।2।।
अर्थ – जो
पर्वतों से
भी बढ़कर ऊँचे
श्री शैल के
शिखर पर, जहाँ
देवताओं का
अत्यन्त समागम
रहता है, प्रसन्नतापूर्वक
निवास करते हैं
तथा जो संसार
के सागर
से पार कराने
के लिए सेतु का कार्य करते है,
उन एकमात्र प्रभु
मल्लिकार्जुन को
मैं शीश झुका कर नमस्कार करता
हूँ।
अवन्तिकायां
विहितावतारंमुक्तिप्रदानाय च
सज्जनानाम् ।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम् ।।3।।
अर्थ – जिन्होंने
अवन्तिपुरी (अर्थात उज्जैन)
में संतजनो को मोक्ष देने के लिए
अवतार लिया है,
उन महाकाल नाम
से विख्यात महादेवजी
शिव जी को मैं
अकाल मृत्यु से
रक्षा के
लिए प्रणाम करता
हूँ.
कावेरिकानर्मदयो:
पवित्रे समागमे
सज्जनतारणाय ।
सदैव मान्धातृपुरे
वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे
।।4।।
अर्थ – जो संसार के सागर से सत्पुरुषो
को पार उतारने
के लिए कावेरी
और नर्मदा के
पवित्र संगम के
निकट मान्धाता के
पुर में सदा
निवास करते हैं,
उन अद्वित्तीय कल्याणमय
भगवान ओमकारेश्वर
जी महाराज रीका मैं
स्तुति करता
हूँ।
पूर्वोत्तरे
प्रज्वलिकानिधाने सदा
वसन्तं गिरिजासमेतम
।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं
तमहं नमामि
।।5।।
अर्थ – जो
पूर्वोत्तर की
दिशा में
चिताभूमि (वर्तमान
का वैद्यनाथ
धाम) के अंदर सदा
ही गिरिजा अर्थात् माता पार्वती के
साथ वास करते
हैं, सुर
और असुर जिनके
चरण कमलों की
अर्चना करते
हैं, उन श्री
वैद्यनाथ को
मैं प्रणाम करता
हूँ।
याम्ये
सदंगे नगरेsतिरम्ये
विभूषितांग विविधैश्च
भोगै: ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं
शरणं प्रपद्ये
।।6।।
अर्थ – जो
अत्यन्त ही मनोरम दक्षिण
के सदंग नगर
में विभिन्न प्रकार के भोगों
से संपन्न होकर
आभूषणों से
सुसज्जित हो
रहे हैं, जो
एकमात्र सदभक्ति
और मुक्ति को
देने वाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथ
जी की शरण
में मैं जाता
हूँ।
महाद्रिपार्श्चे
च तट
रमन्तं सम्पूज्यमानं
सततं मुनीन्द्रै:
।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं
शिवमेकमीडे ।।7।।
अर्थ – जो
केदारश्रृंग
के तट पर महागिरि हिमालय
के पास सदा
निवास करते हुए
मुनीश्वरो द्वारा
पूजे जाते हैं
तथा सुर,
असुर, यज्ञ और
महान सर्प आदि
भी जिनकी पूजा
करते हैं, उन
एक कल्याणकारक भगवान
केदारनाथ का
मैं स्तुति
करता हूँ।
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरीतीरपवित्रदेशे ।
यद्दर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति
तं त्र्यम्बकमीशमीडे
।।8।।
अर्थ – जो
गोदावरी तट
के पवित्र देश
में सह्य पर्वत
के विमल शिखर
पर वास करते
हैं, जिनके दर्शन
से तुरन्त ही
पातक नष्ट हो
जाता है, उन
श्री त्र्यम्बकेश्वर
का मैं स्तवन
करता हूँ.
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं
विशिखैरसंख्यै: ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं
तं रामेश्वराख्यं
नियतं नमामि
।।9।।
अर्थ – जो
भगवान श्री रामचन्द्र
जी के द्वारा
ताम्रपर्णी और
सागर के संगम
में अनेक बाणों
द्वारा पुल बाँधकर
स्थापित किये
गए, उन श्री
रामेश्वर को
मैं नियम से
प्रणाम करता हूँ.
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च
।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं
तं शंकरं
भक्तहितं नमामि
।।10।।
अर्थ – जो
डाकिनी और शाकिनी
वृन्द में प्रेतों
द्वारा सदैव सेवित
होते हैं, उन
भक्ति हितकारी भगवान
भीम शंकर को
मैं प्रणाम करता
हूँ.
सानन्दमानन्दवने
वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम
।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं
शरणं प्रपद्ये
।।11।।
अर्थ – जो
स्वयं आनंद कन्द
हैं और आनंदपूर्वक
आनन्द वन (वर्तमान
में काशी) में
वास करते हैं,
जो पाप समूह
के नाश करने
वाले हैं, उन
अनाथों के नाथ
काशीपति श्री
विश्वनाथ की
शरण में मैं
जाता हूँ.
इलापुरे
रम्यविशालकेsस्मिन
समुल्लसन्तं च
जगद्वरेण्यम ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णे श्वराख्यं
शरणं प्रपद्ये
।।12।।
अर्थ – जो
इलापुर के सुरम्य
मंदिर में विराजित होकर
समस्त जगत के
आराधनीय हो
रहे हैं, जिनका
स्वभाव बड़ा ही
उदार है, उन
घृष्णेश्वर नामक
ज्योतिर्मय भगवान
शिव की शरण
में मैं जाता
हूँ.
ज्योतिर्मयद्वादशलिंगानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं
क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा
मनुजोsतिभक्त्या
फलं तदालोक्य
निजं भजेच्च
।।13।।
अर्थ – यदि
मनुष्य क्रमश: कहे
गये इन द्वादश
ज्योतिर्मय शिव
लिंगो के स्तोत्र
का भक्तिपूर्वक पाठ
करें तो इनके
दर्शन से होने
वाला फल प्राप्त
कर सकता है.
बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान – Twelve Jyotirlingam and Place
सोमनाथ
गुजरात
मल्लिकार्जुन
आँध्र
प्रदेश
महाकालेश्वर
मध्य
प्रदेश
ऊँकारेश्वर
मध्य प्रदेश
केदारनाथ
उत्तराखंड
भीमाशंकर
महाराष्ट्र
काशी विश्वनाथ
उत्तर
प्रदेश
त्र्यम्बकेश्वर
महाराष्ट्र
वैद्यनाथ धाम
झारखंड
नागेश्वर
गुजरात
रामेश्वरम
तमिलनाडु
घृष्णेश्वर
महाराष्ट्र