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Wednesday, July 22, 2020

चन्द्र कवच || Chandra Kavacham

चन्द्र कवच || Chandra Kavacham


चन्द्र कवच। Chandra kavach

श्रीचंद्रकवचस्तोत्रमंत्रस्य गौतम ऋषिः I अनुष्टुप् छंदः Iचंद्रो देवता I चन्द्रप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः Iसमं चतुर्भुजं वन्दे केयूरमुकुटोज्ज्वलम् Iवासुदेवस्य नयनं शंकरस्य च भूषणम् II १ I।एवं ध्यात्वा जपेन्नित्यं शशिनः कवचं शुभम् Iशशी पातु शिरोदेशं भालं पातु कलानिधिः II २ IIचक्षुषी चन्द्रमाः पातु श्रुती पातु निशापतिः Iप्राणं क्षपाकरः पातु मुखं कुमुदबांधवः II ३ IIपातु कण्ठं च मे सोमः स्कंधौ जैवा तृकस्तथा Iकरौ सुधाकरः पातु वक्षः पातु निशाकरः II ४ II हृदयं पातु मे चंद्रो नाभिं शंकरभूषणः Iमध्यं पातु सुरश्रेष्ठः कटिं पातु सुधाकरः II ५ IIऊरू तारापतिः पातु मृगांको जानुनी सदा Iअब्धिजः पातु मे जंघे पातु पादौ विधुः सदा II ६ IIसर्वाण्यन्यानि चांगानि पातु चन्द्रोSखिलं वपुः Iएतद्धि कवचं दिव्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकम् IIयः पठेच्छरुणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी भवेत् II ७ IIII इति श्रीब्रह्मयामले चंद्रकवचं संपूर्णम् II



चन्द्र कवच के 9 फायदे / लाभ || चन्द्र कवचम / 9 अविश्वनीय फायदे या लाभ . नियमित रूप से चंद्र कवच का पथ करने से लाभ

  1. चंद्र ग्रह के खराब होने पर चंद्रग्रह कवचम का पाठ भी जातक के लिए लाभदायक होता है।

  2. यदि आप अपने जीवन में चंद्र ग्रह से किसी भी तरह के नुकसान या बुरे प्रभाव से पीड़ित हैं, तो चंद्र कवचम् पढ़ने से निश्चित रूप से आपके जीवन में सुधार होगा।

  3. यदि चंद्र ग्रह की महादशा और मूड आपके लिए विपरीत है, तो चंद्र कवचम् पढ़ना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।

  4. यदि कुंडली में चंद्र ग्रह अशुभ प्रभाव दे रहा है, तो भी रोज चंद्र कवचराम का पाठ करने से केतु ग्रह शांत हो सकता है।

  5. चंद्र देव की दैनिक पूजा में चंद्र कवचराम का पाठ करने से श्री चंद्र देव की कृपा बनी रहती है।

  6.  चंद्र ग्रह की कुंडली में लोग कमजोर स्थिति से प्रभावित होते हैं या पाप ग्रह से पीड़ित होते हैं, तो चंद्र केवाराम का नियमित रूप से पढ़ने से आपको लाभ हो सकता है।

  7. यदि आपके जीवन में चंद्र ग्रह से संबंधित कोई बीमारी या बीमारी है, तो उस समय चंद्र कवच का पाठ करना चाहिए।

  8. कुंडली के अनुसार, यदि चंद्र ग्रह मारकेश है और चंद्र ग्रह आपके जीवन को प्रभावित कर रहा है, तो चंद्र कवचम का पाठ करने से आपको बहुत लाभ हो सकता है

  9. प्रतिदिन चन्द्र ग्रह कवचम का पाठ करने से चंद्र दोष को मजबूत किया जा सकता है।


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Saturday, July 18, 2020

श्रीपंचमुख हनुमान कवच! Shri Panchmukh Hanuman Kavach best result and explanation

श्रीपंचमुख हनुमान कवच!

श्री गणेशाय नम:| 

ओम अस्य श्रीपंचमुख हनुम्त्कवचमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:| 
गायत्री छंद्:| 
पंचमुख विराट हनुमान देवता| र्‍हीं बीजम्| 
श्रीं शक्ति:| क्रौ कीलकम्| क्रूं कवचम्| 
क्रै अस्त्राय फ़ट्| इति दिग्बंध्:| 

श्री गरूड़ उवाच्|| 

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि| 
श्रुणु सर्वांगसुंदर| यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम्||१||

पंचकक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्| बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम्||२||

पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्| दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणम्||३||

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्| अत्युग्रतेजोवपुष्पंभीषणम भयनाशनम्||४||

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्| सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्||५||

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तं नभोपमम्| पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्| ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्| येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम्|| ६||

जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम्| ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्||७||

खड्गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम्| मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं||८||

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रा दशभिर्मुनिपुंगवम्| एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्||९||

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण्भुषितम्| दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानु लेपनम सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम्||१०||

पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम्| पीताम्बरादिमुकुटै रूप शोभितांगं पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि||११||

मर्कतेशं महोत्राहं सर्वशत्रुहरं परम्| शत्रुं संहर मां रक्ष श्री मन्नपदमुध्दर||१२||

ओम हरिमर्कट मर्केत मंत्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले| यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुंच्यति मुंच्यति वामलता||१३||

ओम हरिमर्कटाय स्वाहा ओम नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूडाननाय सकलविषहराय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा|

ओम नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा|

Wednesday, July 15, 2020

दुर्गा कवच। durga kavach,

 ।।श्री दुर्गा कवच।। 

दुर्गा कवच मार्कंडेय पुराण से श्लोकों का  एक संग्रह है और दुर्गा सप्तशी का महत्वपूर्ण अंग भी है । यह मन्त्र बहुत ही शक्तिशाली है। नवरात्रि  में जो भी भक्त श्रद्धापूर्वक अपनी और अपने परिवार की विभिन्न संकट और बाधाओं से रक्षा के लिए पाठ करता है माँ दुर्गा उनकी रक्षा करती हैं और उनका जीवन सदा  मंगलमय रहता है। किसी भी अनिष्ट और काल से बचने के लिए यह मंत्र बहुत ही प्रभावी होता है।


अथः देव्याः कवचं
ओम अस्य श्री चांदी कवचस्य
माँ दुर्गा कवच ब्रह्मा रिशहिह अनुषःतुफ छन्दाह चामुण्डा देवता ,
अङ्गन्या सोकतंत्रो बीजमह दिग्बंध देवता स्तत्त्वमाह
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशती पाठांगत्वेन जापे विनियोगः।

मार्कण्डेय उवाच
ओम याद_गुह्यं परमम् लोके सर्वा रक्षाकरम नृणामः ।
यांना कस्या _छिड़ा _ख्यातम् तन्मे ब्रूहि पितामह ॥

ब्रह्मो वाच
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपक्का रकमः।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तक्षिणुष्वा महामुँमे ॥

1- प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्र घंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकामः ॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठम कात्यायनीति चा ।
सप्तमं कालरात्रीति महा गौरीति चाष्टममाह ॥

2- नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उकताकण्येतानी नामानि ब्रह्मा _नैव महात्मांना ॥
अग्निना दहा मानस्तु शत्रुमध्ये गतो राने।
विषमे दुर्गमे चैवा भयार्ताः शरणम गताः ॥

3- ना तेश्हां जायते किंचिदशुभम रणसँ_कते।
नापदम् तस्या पश्यामि शोकदुःखा _भयं न ही ॥
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि राक्षस ताना संस्षायाः ॥
प्रेता _संस्था तू चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गाजा _समा _रूढा वैशहनावी गरुडासना ॥

4- माहेश्वरी वृध्हारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥
श्वेतरूपा_धारा देवी ईश्वरी वृषः_वाहना।
ब्राह्मी हंसा_समारूढा सर्वा भरना भूष हिता ॥

 

5- इयत्ता मातरः सर्वाः सर्वयोगा समन-विताः।
नाना_भरना_शोभागःया नाना_रत्नो पशो_भीताः ॥
दृतीयन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधा_समा_कुलाह।
शङ्खं चक्रम गदाम शक्तिं हलम चा मुसलायुधमा ॥

6- खेटकम टिमरन चैव परशुम् पाशमेवा चा।
कुन्तायुधम् दत्रिशूलं चा शाराम_आयुध_मुत्तमम् ॥
डैयानाम देहनाशाय भक्ता_नामा_भयाया चा।
धारयन्त्या_आयुधा_नीथम देवानं चा हिताया वाई ॥

7- नमस्तेअस्तु महारौद्रे महा_घोरा_पराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महा_भयविनाशिनी ॥
त्राहि माँ देवी दुषःप्रेक्ष्ये शत्रूणां भयावर_धिनि।
प्राचाहयाम रक्षतु माँ_मैंड्री आग्नेय_या_अग्नि_देवता ॥

8- दक्षिणावतु वाराही नैऋत्यां खड़गे_धारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेदा वायव्यां मृगा_वाहिनी ॥
उदच्याम् पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्तादा वैशहनावी तथा ॥

9- एवं दशा दिशो रक्षेच_चामुण्डा शव_वाहना।
या में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ह्ठताः ॥
अजिता वामे पार्श्वे तू दक्षिणे चापराजिता।
शिखामु_द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्धिनी व्यवस्थिता ॥

10- मालाधारी ललाटे चा भ्रुवौ रक्षेद यहस्विनी।
त्रिनेत्रा चा भ्रुवोर_मध्ये यम_घंटा चा नासिक ॥
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्र्डवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तू शांकरी ॥

11- नासिकायाम् सुगंधा चा उत्तरोष्ठे चा चर्चिका।
अधारे चामृतकला जिह्वा_याम चा सरस्वती ॥
दंताना रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तू चण्डिका।
घंटिकाम चित्र_घंटा चा महा_माया चा तालुके ॥

12- कामाक्षी चिबुकम रक्षेदा वाचं में सर्वमंगला।
ग्रीवायाम् भद्रकाला चा पृश्ह्टः_वंशे धनुर_धारिणी ॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकाम नलकूबरी।
स्कन्धयोः खादिगणी रक्षेदा बाहु में वज्रधारिणी ॥

13- हसयोर्दान_दिनी रक्षेद_अम्बिका चांगुलेशहु चा।
नखाज्ञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेताकुलेश्वरी ॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये लेता देवी उदरे शूलधारिणी ॥

14- नाभौ चा कामिनी रक्षेदा गुह्यं गुह्येश्वरी तःथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुंडे महिष्हावाहिनी ॥
कैयानम भगवती रक्षेज्जानूनी विंध्य_वासिनी।
जांघे महाबला रक्षित_सर्वकामना_प्रदायिनी ।।

15- गुल्फा_योर्नारसिंही चा पाद_परिष्ह्ठे तू तैजसी।
पादांगुलेशहु श्री रक्षित_पादादहतदसक्साला_वासिनी ॥
नखाना दंशहतृकारली चा केशांश्चैवोधर्वकेशिनी।
रोमा_कूपेशहु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तःथा ॥

16- रक्तमा_इजावा_सामान_सां_यस्थि_मेडन्सी पार्वती।
अंतरानी काला_रात्रिश्चा पित्तं चा मुकुटेश_वारी ॥
पद्मावती पद्मकोशे कैफे छू_डामणिस_तथा।
ज्वालामुखी नखा_ज्वाला_मभेद्या सर्वसन्धिषहु ॥

17- शुक्रम् ब्राह्मणी में रक्षेच्अच्छायाम् छत्रेश्वरी तःथा ।
हंकाराम मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ॥
वज्रा_हस्ता चा में रक्षेत्प्राणाम् कल्याणशोभना ॥
रासे रुपए चा गन्धे चा शब्दे स्पर्शे चा योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥

18- आयु रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं चा लक्ष्मीं चा धनम विद्याम चा चक्रिणी ॥
गोत्रमिन्द्राणी में रक्षेत्पशूमे रक्षा चण्डिके।
पुत्राना रक्षण_महा_लक्ष्मी_भार्यां रक्षतु भैरवी ॥

19- पंथनम सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तःथा ।
राजद्वारे महा_लक्ष्मी_विजय सर्वतः स्थिता ॥
रक्षा_हीनं तू यत्स्थानम् वर्जितम् कवचेन तू।
तत्सर्वं रक्षा में देवी जयन्ती पापनाशिनी ॥

20- पडम्केम न गछछेत्तु यदीच्छेच्च्छुभमात्मनः।
कवचेनावृता नित्यं यात्रा यत्रैवा गच्छति ॥
तत्रा तत्रा_अर्था_लाभश्चा विजयः सार्व_कामिकः।
यम यम चिन्तयते कमम तम तम प्राप्नोति,
निश्चितम् परमेश_वर्य_मतुलम प्राप्स्यते पुमाना ॥

21- निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रा_मेष्ह्व_पराजितः।
त्रैलोक्ये तू भवेत्_पूज्यः कवचे_नाविृतः पुमाना ॥
इदं तू देव्याः कवचं देवा_णाम्पई दुर्लभमा।
यह पथप्ररतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितं ॥

22- दैवी काल भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्ह्व_पराजितः।
जीवड़ा वर्षहषतम संग्राम_पमृत्युवि_वर्जितः ॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लुटाविस्फोटकादयः।
स्थावरम जंगमं चैव कीर्तिमं चापि यद्विषहमा ॥

23- अभी_चारानी सर्वाणि मंत्र_यन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तःतःथा।

अन्तरिक्षचार्रा घोरा डाकिन्यश्चा महाबलः ॥

 

24- ग्रहभूतपिशाचाश्चा यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षस_इटालाः कुश्ह्माण्डा भैरवादयः ॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे ह्रीदय संस्थिते।
मानोन्नति_भवेदा राज्ञस्तेजोवृद्धिकरम परम ॥
यशसा वार्ड_धरते सोअपि कीर्ति मण्डितभूतले।
जपेतासप्तशतीं चण्डीं कृितवा तू कवचं पूरा ॥

 

25- यावद्भूमण्डलम् धत्ते सशैलवनकानमा ।
तावत्तिष्ह्ठती मेदिन्याम सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी ॥
देहान्ते परमम् स्थानं यतस्रैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महमाया प्रसादतः ॥
लभते परमम् रूपम शिवना सहा मोदते ॥ ॐ ॥

 

 

।। इति समाप्तः ।।


Sunday, July 12, 2020

शनि कवचं

II शनि कवचं II 

To make happy bhagwan shanidev shani kavach is a unbeatable mantra. 
शनि देव अर्थात न्याय के देवता , सूर्य के पुत्र और महाकाल के उपासक, इनकी आराधना करने से कार्य में आने वाली बाधा और आने वाला संकट टल जाता हैं। शनि कवच का पाठ करने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता हैं। शनि कवच का पाठ उस संकट के लिए कवच का काम करता है।



अथ श्री शनि कवचम् 

अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II 

अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II 

शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II 

निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् II 

चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः II II 

ब्रह्मोवाच II 

 श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत्

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् II II 

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् II II 

श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः

नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः II II 

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा

स्निग्धकंठःश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः II II 

स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः

वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा II II 

नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा

ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा II II 

पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः

अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः II II 

इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः

तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः II II 

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा

कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः II १० II 

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे

कवचं पठतो नित्यं पीडा जायते क्वचित् II ११ II 

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा

द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा

जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः II १२ II 

 II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं II 

 II Shani Kavachaṁ II

atha śrī śanikavacham
asya śrī śanaiścarakavacastōtramantrasya kaśyapa r̥ṣiḥ II
anuṣṭup chandaḥ II śanaiścharō dēvatā II śīṁ śaktiḥ II
nilāmbarō nīlavapuḥ kirīṭī gr̥dhrasthitastrāsakarō dhanuṣmān II
śūṁ kīlakam II śanaiścaraprītyarthaṁ japē viniyōgaḥ II
śruṇūdhvamr̥ṣayaḥ sarvē śanipīḍ'̔āharaṁ mahat I
caturbhujaḥ sūryasutaḥ prasannaḥ sadā mama syādvaradaḥ praśāntaḥ II 1 II brahmōvāca II
śanaiścaraprītikaraṁ sarvasaubhāgyadāyakam II 3 II
kavacaṁ śanirājasya saurēridamanuttamam II 2 II kavacaṁ dēvatāvāsaṁ vajrapan̄jarasan̄jñakam I
nāsāṁ vaivasvataḥ pātu mukhaṁ mē bhāskaraḥ sadā I
'om śrīśanaiścaraḥ pātu bhālaṁ mē sūryanandanaḥ I nētrē chāyātmajaḥ pātu pātu karṇau yamānujaḥ II 4 II
vakṣaḥ pātu yamabhrātā kukṣiṁ pātvasitatsathā II 6 II
snigdhakaṇṭhaḥśca mē kaṇṭhaṁ bhujau pātu mahābhujaḥ II 5 II skandhau pātu śaniścaiva karau pātu śubhapradaḥ I nābhiṁ grahapatiḥ pātu mandaḥ pātu kaṭiṁ tathā I
ityētatkavacaṁ divyaṁ paṭhētsūryasutasya yaḥ I
ūrū mamāntakaḥ pātu yamō jānuyugaṁ tathā II 7 II pādau mandagatiḥ pātu sarvāṅgaṁ pātu pippalaḥ I aṅgōpāṅgāni sarvāṇi rakṣēnmē sūryanandanaḥ II 8 II na tasya jāyatē pīḍā prītō bhavati sūryajaḥ II 9 II
ityētatkavacaṁ divyaṁ saurēryanirmitaṁ purā I
vyayajanmadvitīyasthō mr̥tyusthānagatōSpi vā I kalatrasthō gatō vāpi suprītastu sadā śaniḥ II 10 II aṣṭamasthē sūryasutē vyayē janmadvitīyagē I kavacaṁ paṭhatō nityaṁ na pīḍā jāyatē kvacit II 11 II dvādaśāṣṭamajanmasthadōṣānnāśāyatē sadā I
II iti śrībrahmāṇḍapurāṇē brahma-nāradasanvādē śanaiścarakavacaṁ sampūrṇaṁ II
janmalagnāsthitāndōṣānsarvānnāśayatē prabhuḥ II 12 II