- शिव तांडव स्तोत्रम। shiv tandav stotram
उनके अन्य नाम रुद्र, शंकर भोलेनाथ, महाकाल आदि हैं।
त्रिदेव में से एक देवता जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा जाता है। एक बार जब रावण कैलाश पर्वत को उठाने के लिए तत्पर हुआ तो भोलेनाथ ने अपने अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। रावण को पीड़ा सहन नह हो रही थी उस समय रावण ने कालो के काल महाकाल को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोतम की रचना की।भगवान शिव के इस परम् भक्त ने शिव भक्तों में अपना सर्वोच्च स्थान बनाया।
17 श्लोकों के इस शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शिव बहुत खुश हुए और उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारा यह भजन सदैव अमर रहेगा और जो कोई भी मेरी स्तुति में यह भजन सुनाएगा। वह मेरा आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। इस भजन की रचना के कारण, भगवान शिव ने रावण के नाम से लंका के राजा को संबोधित किया।शिव जी |
आसान उच्चारण में शिव तांडव कर सकते है आप।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलेगलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धराधरेंद्रनंदिनीविलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्॥
शिव तांडव उच्चारण का लाभ
शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से मन की शान्ति, सुख और समृद्धि मिलती है। जिनकी कुण्डली में पितृ दोष और कालसर्प दोष होता हैं उन्हें मुक्ति मिलती है। यह कहा जाता है कि किसी ब्राह्मण की उपस्थिति में ही यह किया जाना चाहिए।
Jaṭāṭavīgalajjalapravāhapāvitasthalēgalē̕valambya lambitāṁ bhujaṅgatuṅgamālikām.Ḍamaḍḍamaḍḍamaḍḍamanninādavaḍḍamarvayaṁ chkāra chṇḍatāṇḍavaṁ tanōtu naḥ śivaḥ śivam.1. Vilōlavī civallarī virājamānamūrdhani. Dhagad'dhagad'dha gajjvalallalāṭa paṭṭapāvakē kiśōrachndraśēkharē ratiḥ pratikṣaṇaṁ mamaṁ.2.Dharā dharēndra nandinī vilāsa bandhuvandhura- sphuradr̥ganta santati pramōda mānamānasē. Kr̥pākaṭā kṣadhāraṇī nirud'dhadurdharāpadi kavacidvigambarē manō vinōdamētu vastuni.3.
Jaṭā bhujaṁ gapiṅgala sphuratphaṇāmaṇiprabhā- kadambakuṅkuma dravapralipta digvadhūmukhē. Madāndha sindhu rasphuratvaguttarīyamēdurē manō vinōdadbhutaṁ bimbhartu bhūtabhartari.4.
Sahasra lōchna prabhr̥tya śēṣalēkhaśēkhara- prasūna dhūlidhōraṇī vidhūsarāṅghripīṭhabhūḥ. Bhujaṅgarāja mālayā nibad'dhajāṭajūṭakaḥ śriyē cirāya jāyatāṁ chkōra bandhuśēkharaḥ.5.
Lalāṭa chtvarajvalad'dhanan̄jayasphurigabhā- nipītapan̄chsāyakaṁ nimannilimpanāyam . Sudhā mayukha lēkhayā virājamānaśēkharaṁ mahā kapāli sampadē śirōjayālamastū naḥ.6.
Karāla bhāla paṭṭikādhagad'dhagad'dhagajjvala- d'dhanan̄jayā dharīkr̥taprachṇḍapan̄chsāyakē. Dharādharēndra nandinī kucāgracitrapatraka- prakalpanaikaśilpini trilōchnē matirmama.7.
Navīna mēgha maṇḍalī nirud'dhadurdharasphura- tkuhu niśīthinītamaḥ prabandhabandhukandharaḥ. Nilimpanirjhari dharastanōtu kr̥tti sindhuraḥ kalānidhānabandhuraḥ śriyaṁ jagand'dhurandharaḥ.8.
Praphulla nīla paṅkaja prapan̄chkālimacchaṭā- viḍambi kaṇṭhakandha rāruci prabandhakandharam smaracchidaṁ puracchinda bhavacchidaṁ makhacchidaṁ gajacchidāndhakacchidaṁ tamantakacchidaṁ bhajē.9.
Agarvasarvamaṅgalā kalākadambaman̄jarī- rasapravāha mādhurī vijr̥mbhaṇā madhuvratam . Smarāntakaṁ purātakaṁ bhāvantakaṁ makhāntakaṁ gajāntakāndhakāntakaṁ tamantakāntakaṁ bhajē.10.
Jayatvadabhravibhrama bhramadbhujaṅgamasphura- d'dhagad'dhagadvi nirgamatkarāla bhāla havyavāṭ- dhimid'dhimid'dhimi nanmr̥daṅgatuṅgamaṅgala- dhvanikramapravartita prachṇḍa tāṇḍavaḥ śivaḥ.11.
Dr̥ṣadvicitratalpayōrbhujaṅga mauktikamasrajō- rgariṣṭharatnalōṣṭayōḥ suhr̥dvipakṣapakṣayōḥ. Tr̥ṇāravindachkṣuṣōḥ prajāmahīmahēndrayōḥ samaṁ pravartayanmanaḥ kadā sadāśivaṁ bhajē.12.
Kadā nilimpanirjharī nikujakōṭarē vasan vimuktadurmatiḥ sadā śiraḥsthaman̄jaliṁ vahan. Vimuktalōlalōchnō lalāmabhālalagnakaḥ śivēti mantramucchrankadā sukhī bhavāmyaham.13.
Nilimpa nāthanāgarī kadamba maulamallikā- nigumphanirbhakṣaranma dhūṣṇikāmanōharaḥ. Tanōtu nō manōmudaṁ vinōdinīmmahaniśaṁ pariśraya paraṁ padaṁ tadaṅgajatviṣāṁ chyaḥ.14.
Prachṇḍa vāḍavānala prabhāśubhapracāraṇī mahāṣṭasid'dhikāminī janāvahūta jalpanā. Vimukta vāma lōchnō vivāhakālikadhvaniḥ śivēti mantrabhūṣagō jagajjayāya jāyatām .15.
Imaṁ hi nityamēva muktamuktamōttama stavaṁ paṭhansmaran bruvannarō viśud'dhamēti santatam. Harē gurau subhaktimāśu yāti nānyathā gatiṁ vimōhanaṁ hi dēhanā tu śaṅkarasya cintanama.16.
Pūjā̕vasānasamayē daśavakratragītaṁ yaḥ śambhūpūjanamidaṁ paṭhati pradōṣē. Tasya sthirāṁ rathagajēndraturaṅgayuktāṁ lakṣmī sadaiva sumukhīṁ pradadāti śambhuḥ.17.
. Iti śiva tāṇḍava stōtraṁ sampūrṇam.