सरस्वती वंदना (Saraswati vandana in sanskrit )
माँ सरस्वती विद्या की देवी है और उनकी प्रार्थना के साथ ही प्रत्येक विद्यालय में शिक्षण का प्रारंभ करते है। प्रार्थना के साथ दिन का शुरुआत करने से मन मे शान्ति बनी रहती है और अध्ययन में मन लगता है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः ,
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः !
Saraswati Vandana in hindi
हे हंसवाहिनी, ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे अम्ब …………….
जग सिरमौर बनाये भारत, वोह बल विक्रम दे . वोह बल …….
साहस, शील हृदय में भर दे , जीवन त्याग तपोमय कर दे,
सहनशक्ति स्नेह का भर दे, स्वाभिमान भर दे, स्वाभिमान भर दे .……..
हे हंसवाहिनी , ज्ञान दायिनी , अम्ब विमल मति दे अम्ब ………….
लव, कुश, ध्रुव, प्रह्लाद बने हम, मानवता का त्रास हरें हम,……..
सीता, सावित्री, दुर्गा मान फिर घर -घर भर दे, फिर घर……..
हे हंस वाहिनी, ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे, अम्ब ……
हम दीन-दुखियों, निबलों-विकलों के,
सेवक बन संताप हरें।
जो हैं अटके, भूले-भटके,
उनको तारें खुद तर जावें॥
॥ वह शक्ति हमें दो दयानिधे...॥
छल, दंभ-द्वेष, पाखंड-झूठ,
अन्याय से निशिदिन दूर रहें।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना,
शुचि प्रेम-सुधा रस बरसावें॥
॥ वह शक्ति हमें दो दयानिधे...॥
निज आन-बान, मर्यादा का,
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे।
जिस देश-जाति में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावें॥
॥ वह शक्ति हमें दो दयानिधे...
जय.सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।।
चन्द्रवदनि, पद्मासिनि द्युति मंगलकारी।
सोहे हंस-सवारी, अतुल तेजधारी।। जय.।।
बायें कर में वीणा, दूजे कर माला।
शीश मुकुट-मणि सोहे, गले मोतियन माला ।।जय..।।
देव शरण में आये, उनका उद्धार किया।
पैठि मंथरा दासी, असुर-संहार किया।।जय..।।
वेद-ज्ञान-प्रदायिनी, बुद्धि-प्रकाश करो।।
मोहज्ञान तिमिर का सत्वर नाश करो।।जय..।।
धूप-दीप-फल-मेवा-पूजा स्वीकार करो।
ज्ञान-चक्षु दे माता, सब गुण-ज्ञान भरो।।जय..।।
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी, सुखकारी ज्ञान-भक्ति पावे।।जय..।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥